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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


कैदी (कहानी) : मुंशी प्रेमचंद

इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियों का जानी दुश्मन, दिन में दो-चार विद्रोहियों को जब तक जेल न भेज लेता, उसे चैन न आता।
आते-ही-आते उसने कई सम्पादकों पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर उन्हें साइबेरिया भेजवा दिया, कृषकों की सभाएँ तोड़ दीं, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दी और जब जनता ने अपना रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये,तो पुलिस से भीड़ पर गोलियाँ चलवायीं, जिससे कई बेगुनाहों की जानें गयीं। मार्शल लॉ जारी कर दिया। सारे नगर में हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के घरों से न निकलते थे; क्योंकि पुलिस हर एक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी। हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा, यह अन्धेर तो अब नहीं देखा जाता,
आइवन। इसका कुछ उपाय होना चाहिए। आइवन ने प्रश्न भरी आँखों से देखा उपाय ! हम क्या कर सकते
हैं ?
हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा, 'तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं ? मैं कहती हूँ, हम सबकुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथों से उसका अन्त कर दूंगी।'
आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा-'तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान है ? वह कभी खुली गाड़ी में नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारों का एक दल हमेशा रहता है। रेलगाड़ी में भी वह रिजर्व डब्बों
में सफर करता है ! मुझे तो असम्भव-सा लगता है, हेलेन बिल्कुल असंभव।' हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मुँह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों में तेज भरकर बोली, 'यह सबकुछ होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ,आइवन ! आदमी एक बार अपनी जान पर खेलकर सबकुछ कर सकता है।'
'जानते हो, मैं क्या करूँगी ? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूँगी; उसका विश्वास प्राप्त करूँगी, उसे इस भ्रांति में डालूँगी कि मुझे उससे प्रेम है। मनुष्य कितना ही ह्रदयहीन हो, उसके ह्रदय के किसी-न-किसी कोने में पराग की भाँति रस छिपा ही रहता है। मैं तो समझती हूँ कि रोमनाफ की यह दमन-नीति उसकी अवरुद्ध अभिलाषा की गाँठ है और कुछ नहीं। किसी मायाविनी के प्रेम में असफल होकर उसके ह्रदय का रस-ऱेत सूख गया है। वहाँ रस का संचार' करना होगा और किसी युवती का एक मधुर शब्द, एक सरल मुस्कान भी जादू का काम करेगी ! ऐसों को तो वह चुटकियों में अपने पैरों पर गिरा सकती है। तुम-जैसे सैलानियों को रिझाना इससे कहीं कठिन है। अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि मैं रूपहीन नहीं हूँ, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मेरा कार्य सफल होगा। बतलाओ मैं रूपवती हूँ या नहीं ? ' उसने तिरछी आँखों से आइवन को देखा।
आइवन इस भाव-विलास पर मुग्धा होकर बोला, 'तुम यह मुझसे पूछती हो, हेलेन ? मैं तो तुम्हें संसार
की ...'

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